Tuesday, February 25, 2014

एक बूंद -- अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

ज्यों निकल कर बादलों की गोद से,
थी अभी एक बूंद कुछ आगे बढ़ी,
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,
आह! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी...?



देव! मेरे भाग्य में क्या है बदा,
मैं बचूंगी या मिलूंगी धूल में?
या जलूंगी फिर अंगारे पर किसी,
चू पडूंगी या कमल के फूल में...?


बह गई उस काल एक ऐसी हवा,
वह समुन्दर ओर आई अनमनी,
एक सुन्दर सीप का मुंह था खुला,
वह उसी में जा पड़ी मोती बनी...


लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते,
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर,
किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें,
बूंद लौं कुछ और ही देता है कर...!!



लेखक परिचय -अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' 



2 comments:

  1. अहा, आनन्द आ गया..........अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध जी
    की सुन्दर रचना साझा करने के लिए आभार....!!!

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  2. मज़ा आ गया इस रचना को पढ़ने के बाद ...

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