Sunday, July 21, 2013
Thursday, July 11, 2013
स्नेह-निर्झर बह गया है :))
सभी ब्लॉगर साथियों को नमस्कार आज प्रस्तुत है आदरणीय सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" जी की रचना "स्नेह निर्झर बह गया है"
स्नेह-निर्झर बह गया है !
रेत ज्यों तन रह गया है ।
आम की यह डाल जो सूखी दिखी,
कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी,
नहीं आते;पंक्ति मैं वह हूँ लिखी,
नहीं जिसका अर्थ-जीवन दह गया है।
दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल,
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल,
ठाट जीवन का वही,जो ढह गया है।
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा।
बह रही है हृदय पर केवल अमा,
मै अलक्षित हूँ,यही कवि कह गया है...!!
Thursday, July 4, 2013
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई - गुलजार :)
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई
तुम को शायद मुघालता है कोई
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई ।
जैसे हम को पुकारता है कोई ।
आदरणीय गुलज़ार साहब की एक बेहतरीन ग़ज़ल ..................!!
@ गुलजार
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