सभी ब्लॉगर साथियों को नमस्कार आज प्रस्तुत है आदरणीय सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" जी की रचना "स्नेह निर्झर बह गया है"
स्नेह-निर्झर बह गया है !
रेत ज्यों तन रह गया है ।
आम की यह डाल जो सूखी दिखी,
कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी,
नहीं आते;पंक्ति मैं वह हूँ लिखी,
नहीं जिसका अर्थ-जीवन दह गया है।
दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल,
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल,
ठाट जीवन का वही,जो ढह गया है।
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा।
बह रही है हृदय पर केवल अमा,
मै अलक्षित हूँ,यही कवि कह गया है...!!
बहुत ही सुंदर कविता पढवाने के लिये आभार.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार....
ReplyDeleteनिरालाजी की खुबसूरत रचना पढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!
ReplyDeleteनिराला जी की रचना साझा करने के लिए आभार...राज जी.
ReplyDeleteRECENT POST ....: नीयत बदल गई.
nirala ji ki kavitayein adbhut hai...abhar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसाझा करने का शुक्रिया.
अनु
निराला जी की ये रचना बचपन में पढ़ी थी ... आज फिर से याद ताज़ा हो गई ... आभार आपका ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना है...
ReplyDeleteसाँझा करने के लिए शुक्रिया..
:-)
Mere pasand ki kavitaa
ReplyDeleteaapkaa shukriya