Thursday, July 11, 2013

स्नेह-निर्झर बह गया है :))

 सभी ब्लॉगर साथियों को नमस्कार आज प्रस्तुत है आदरणीय सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" जी की रचना "स्नेह निर्झर बह गया है"
 
स्नेह-निर्झर बह गया है !
रेत ज्यों तन रह गया है ।
 
आम की यह डाल जो सूखी दिखी,
कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी,
नहीं आते;पंक्ति मैं वह हूँ लिखी,
नहीं जिसका अर्थ-जीवन दह गया है।

दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल,
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल,
ठाट जीवन का वही,जो ढह गया है।

अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा।
बह रही है हृदय पर केवल अमा,
मै अलक्षित हूँ,यही कवि कह गया है...!!
 

 
कवि परिचयः- सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" जी।
 

9 comments:

  1. बहुत ही सुंदर कविता पढवाने के लिये आभार.

    रामराम.

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  2. बहुत सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार....

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  3. निरालाजी की खुबसूरत रचना पढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!

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  4. निराला जी की रचना साझा करने के लिए आभार...राज जी.

    RECENT POST ....: नीयत बदल गई.

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  5. nirala ji ki kavitayein adbhut hai...abhar

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  6. बहुत सुन्दर...
    साझा करने का शुक्रिया.

    अनु

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  7. निराला जी की ये रचना बचपन में पढ़ी थी ... आज फिर से याद ताज़ा हो गई ... आभार आपका ...

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  8. बेहतरीन रचना है...
    साँझा करने के लिए शुक्रिया..
    :-)

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