दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई
तुम को शायद मुघालता है कोई
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई ।
जैसे हम को पुकारता है कोई ।
आदरणीय गुलज़ार साहब की एक बेहतरीन ग़ज़ल ..................!!
@ गुलजार
बहुत ही शानदार गजल पढवाने के लिये आभार.
ReplyDeleteरामराम.
मुघालता शायद गलती से प्रिंट हो गया है, यह शायद मुगालता होना चाहिये.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,गुलजार सा० की शानदार गजल पढवाने के लिये आभार.
ReplyDeleteRECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.
बढ़िया -
ReplyDeleteशुभकामनायें-
बहुत अच्छी लगी यह नज़्म
ReplyDeleteपक गया है शजर पे फल शायद
ReplyDeleteफिर से पत्थर उछालता है कोई ..
बहुत खूब ... हर शेर कमाल है ... मुफ्तालिख अंदाज़ का ... लाजवाब गज़ल ..
गुलजार साहब की सुन्दर प्यारी रचना पढना बहुत अच्छा लगा..
ReplyDeleteक्या बात है गुलज़ार साहब की ... हकीकत यूं ही लिख देता हैं ...
ReplyDeleteआप सभी मित्रों का आभार
ReplyDeleteगुलजार साहब की बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ाने के लिए शुक्रिया....
ReplyDeleteवाह , गुलजार साहब की गजल पढ़कर हमेशा दिल को सुकून सा मिला है , बहुत आभार ,
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
रिश्तों का खोखलापन
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html
बहुत बेहतरीन रचना है गुलजार साहब की..
ReplyDeleteआभार साँझा करने हेतु...
:-)
shukriya baant-ne ke liye...kayi yaadon ko jaga gayi ye ghazal....
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