Thursday, July 4, 2013

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई - गुलजार :)


दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई ।
आदरणीय गुलज़ार साहब की एक बेहतरीन ग़ज़ल ..................!!
@ गुलजार

13 comments:

  1. बहुत ही शानदार गजल पढवाने के लिये आभार.

    रामराम.

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  2. मुघालता शायद गलती से प्रिंट हो गया है, यह शायद मुगालता होना चाहिये.

    रामराम.

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  3. बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,गुलजार सा० की शानदार गजल पढवाने के लिये आभार.

    RECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.

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  4. बढ़िया -
    शुभकामनायें-

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  5. बहुत अच्छी लगी यह नज़्म

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  6. पक गया है शजर पे फल शायद
    फिर से पत्थर उछालता है कोई ..

    बहुत खूब ... हर शेर कमाल है ... मुफ्तालिख अंदाज़ का ... लाजवाब गज़ल ..

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  7. गुलजार साहब की सुन्दर प्यारी रचना पढना बहुत अच्छा लगा..

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  8. क्या बात है गुलज़ार साहब की ... हकीकत यूं ही लिख देता हैं ...

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  9. आप सभी मित्रों का आभार

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  10. गुलजार साहब की बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ाने के लिए शुक्रिया....

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  11. वाह , गुलजार साहब की गजल पढ़कर हमेशा दिल को सुकून सा मिला है , बहुत आभार ,
    यहाँ भी पधारे

    रिश्तों का खोखलापन
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html

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  12. बहुत बेहतरीन रचना है गुलजार साहब की..
    आभार साँझा करने हेतु...
    :-)

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  13. shukriya baant-ne ke liye...kayi yaadon ko jaga gayi ye ghazal....

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